हरेला का इतिहास
Uttarakhand Harela Festival in Hindi
श्रावण मास के हरेला का अपना महत्व है| जैसे की विदित है की श्रावण मास भगवान शंकर के प्रिय मास है, इसलिए इस हरेले को कही कही हर-काली के नाम से भी जन जाता है|
चैत्र व आश्विन मास के हरेले मौसम के बदलाव के सूचक है|
चैत्र मास के हरेला गर्मी के आने की सूचना देता है और आश्विन मास के हरेला सर्दी के आने की सूचना|
हरेला काटने से 10 दिन पहले हरेला बोया जाता है|
१ थाली या टोकरी में मिटटी दाल के उसके ऊपर विभिन्न प्रकार के बीज छिडके जाते है| ये बीज ५ या ७ प्रकार के होते है| जैसे गेहूं, धान, जौ, गहत, मास, सरसों, भट्ट| फ़िर इन सबके ऊपर मिटटी रख दी जाती है| और उस टोकरी या थाली को घर में ही दयाप्तन थान(मन्दिर) में रख दिया जाता है| और रोज थोड़ा थोड़ा पानी छिड़का जाता है| ३-४ दिन के बाद उन बीजो में से अंकुर निकल जाते है| ९-१० दिन के बाद ४-५ इंच के छोटे छोटे पौधे निकल जाते है, इन्हे ही हरयाव(हरेला कहा जाता है)| दसवे दिन इनको काटा जाता है|
सूर्य की रोशनी से दूर रहने के कारण इनका रंग पीला होता है| काटने के बाद इसे देवता को चढ़या जाता है| फ़िर घर के सभी सदस्यों को ये लगाया जाता है| यहा लगाने से अर्थ है की सर व कान पर हरेला के तिनके रखे जाते है|
हरेला शुभ कामनाओं के साथ रखा जाता है| छोटे बच्चो को हरेला पैर से ले जाकर सर तक लगाया जाता है| इसके साथ ही १ शुभ गीत “जी रये-जाग रये” गाया जाता है| इस गीत में दीर्घायु होने की कामना की जाती है|
हरेला काटने के बाद इसमे अक्षत-चंदन डालकर भगवान को लगाया जाता है|
हरेला घर मे सुख, समृधि व शान्ति के लिए बोया व काटा जाता है| हरेला अच्छी कृषि का सूचक है| हरेला इस कामना के साथ बोया जाता है की इस साल फसलो को नुक्सान ना हो|
हरेला के साथ जुड़ी ये मान्यता है की जिसका हरेला जितना बडा होगा उसे कृषि मे उतना ही फायदा होगा|
आप सब लोगो को हरेला की शुभकामनाये|
लाग बग्वाई, लाग बसंत पंचमी
लाग हर्यावा, लाग बिरुर पंचमी
जी रए, जाग रए