लड़की गांव से उपर रोड साइड एक कस्बे में रहती थी. रमेश दा ने लड़की देखी – गोरी फनार लड़की ठैरी
रमेश दा तो चाइयैं रह गया लड़की को .. बोला तुमर नाम कि छ ? कतु तक पढाई कर रे ?
लड़की – कमुली ठैरा मेरा नाम .. हाइस्कूल में तीन नम्बर से थर्ड डिबिजन
रुक गयी ठैरी अलबेर .. बोर्ड का सैन्टर रनकारों ने कथप दूसरे ईसकूल में बना
दिया ठैरा … बाबारे . बिलकुल भी नकल नही हो रही ठैरी वहां .. गजबजाट
जैसा हो गया .. फिर सारे सवाल कोर्स से भ्यैर के ठैरे .. लेख तो अच्छा बनाया ठैरा मैने … पर नम्बर ही नहीं दिये!
…ओइज्या तुम तो चाहा पी ही नहीं रहे… पी लो नहीं तो अरडी जाएगी ..
रमेश दा- किलै पहाड़ी बुलाण नि उन तुमकैं…?
लड़की – समझ जाने वाली ठैरी .. पर बोलना नहीं आने वाला ठैरा .. मैं तो
नानछना बटी यहीं रही ठैरी… गांव तो अप्पर पास करने तक ही रहे ठैरे .. अब
वहां जाना कम ही होने वाला हुवा .. हर इतवार चले गये तो चले गये .. क्या
ठैरा गांव में भी…
रमेश दा- घरक काम करण और पहाड़ी खाण बड़ूण तो उने हुनेल तुमकैं .. जसि मडुव रोट .. भटक चुरकाणि .. भटिया…राजण ..वगैरह ..
लड़की – ना हो .. नी आता ये बनाना .. एक बार ईजा ने बनाया था मडुवे का रोटा ओर भटिया .. देखकर ही वाक्क जैसी हो जाने वाली हुई …
ब्या के बाद तो दिल्ली ही रहना ठैरा तुम्हारे साथ ..फिर ये भटिया वटिया सीखकर क्या करना ठैरा..
रमेश दा ने मन ही मन कहा बाबाहो .. कहां फस गया यार .. और ब्या का खयाल मन से निकालकर बोला अब तो अगले साल ही देखी जाऐगी बल…😜😜